
रंगा सियार: पंचतंत्र की प्रसिद्ध कहानी
एक जंगल में एक बहुत ही चालाक और भूखा सियार रहता था। एक बार भोजन की तलाश में वह भटकते हुए शहर की सीमा में घुस गया। वहाँ पालतू कुत्तों ने उसे देख लिया और वे भौंकते हुए उसके पीछे पड़ गए।
कुत्तों से बचने के लिए सियार ने एक धोबी के घर में शरण ली, जहाँ गलती से वह नीले रंग के घोल से भरे एक बड़े बर्तन में गिर गया। जब वह बाहर निकला, तो उसका पूरा शरीर चटक नीले रंग का हो चुका था। उसे पहचानना नामुमकिन था।
जब वह जंगल वापस लौटा, तो उसका विचित्र रूप देखकर शेर, बाघ और हाथी जैसे शक्तिशाली जानवर भी डर गए।
सियार ने उनकी घबराहट का लाभ उठाया और ऊंचे पत्थर पर चढ़कर घोषणा की, “भयभीत मत हो! स्वयं ईश्वर ने मुझे अपने हाथों से रंगा है और आदेश दिया है कि मैं पृथ्वी पर जाकर तुम सब असहाय जानवरों का राजा बनूँ। अब से मेरा वचन ही कानून होगा।”
उसकी नीली आभा से प्रभावित होकर सभी जानवरों ने उसे अपना सम्राट स्वीकार कर लिया। सियार अब राजसी सुख भोगने लगा। वह शेरों से शिकार करवाता और खुद आराम से खाता। उसने अपने ही सियार परिवार को तुच्छ समझकर जंगल से बाहर निकाल दिया ताकि कोई उसकी पहचान न जान सके।
एक चांदनी रात में, जब वह अपनी सभा में बैठा था, दूर से सियारों के एक झुंड के चिल्लाने (हुआँ-हुआँ) की आवाज आई। अपनी जन्मजात प्रवृत्ति और उत्तेजना में आकर नीला सियार भूल गया कि वह राजा है।
वह भी आसमान की ओर मुँह करके जोर-जोर से चिल्लाने लगा। उसकी आवाज सुनते ही शेर और बाकी जानवर समझ गए कि उन्हें धोखा दिया गया है। क्रोधित होकर सभी जानवर उस पर टूट पड़े और सियार को अपनी धूर्तता की भारी कीमत चुकानी पड़ी।
सीख: बाहरी रूप बदलकर आप पद तो पा सकते हैं, लेकिन अपना स्वभाव और असलियत छिपाना असंभव है।
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